मेरी कविताएँ, मेरा संसार, कागज पर उकेरे गए मेरे दिल के अहसास,
खाली वक्त के मेरे साथी, मेरे एकांत के सखा,
वो आवाज जो कोई सुन न सका,
जिसे किसी को सुना ना सका.....
Monday, May 12, 2008
मेरी कविता
रूठ गए है अपने हम से बिसर गए सपने नयन से टीस रहे है घाव ह्रदय के पिघल रहे नीर नयन से कही नही सुरभि जीवन मे बसता है दर्द मन के अगन मे जीवन है जब भावों से रीता मैं क्या लिखूं कोई कविता
"कहने को सब कहते रहते कुछ कड़वी कुछ मीठी बातें अनजाने ही दे जाते है कोमल मन को गाहरी घातें किंतु मौन अधरों की भाषा समझे जो बिरला होता है. तुम क्या जानो क्या होता है? जब स्वप्निल अनुबंध टूटतें मिले-मिलाएं तार रुठतें धवल चाँदनी के छौनो को अंधकार के दूत लूटते. सूनी चौखट पर जब कोई ख़ुद पर ही हंसता रोता है रिमझिम के मृदु गीत सुनाकर बेसुध सोई पीर जगह कर दास्तक देती है पुरवाई सुवा पंख चूनर लहरा कर पर सुधियाँ पग रखते डरती इतना मान भीगा होता है किंतु मौन अधरों की भाषा समझे जो बिरला होता है."
"Maun Adhro Ki Bhasha" mujhe kavita likhne nahi aati ye to apki hi hai bt mujhe bahut achhi lagi.....
2 comments:
I dont knw mujhe kya kahna chahiye bt only "nice poem which say everything....."
"कहने को सब कहते रहते
कुछ कड़वी कुछ मीठी बातें
अनजाने ही दे जाते है
कोमल मन को गाहरी घातें
किंतु मौन अधरों की भाषा
समझे जो बिरला होता है.
तुम क्या जानो क्या होता है?
जब स्वप्निल अनुबंध टूटतें
मिले-मिलाएं तार रुठतें
धवल चाँदनी के छौनो को
अंधकार के दूत लूटते.
सूनी चौखट पर जब कोई
ख़ुद पर ही हंसता रोता है
रिमझिम के मृदु गीत सुनाकर
बेसुध सोई पीर जगह कर
दास्तक देती है पुरवाई
सुवा पंख चूनर लहरा कर
पर सुधियाँ पग रखते डरती
इतना मान भीगा होता है
किंतु मौन अधरों की भाषा
समझे जो बिरला होता है."
"Maun Adhro Ki Bhasha"
mujhe kavita likhne nahi aati ye to apki hi hai bt mujhe bahut achhi lagi.....
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