Sunday, May 11, 2008

प्रवासी

पश्चिम से जब चलती है हवाएँ
तुमसे कुछ कहती है हवाएँ
सुनना बेटा कान लगा कर
गुनना बेटा ध्यान लगा कर
इनमे छुपी है कुछ कथाएँ
कितने आंसू कितनी व्यथाएं
टूट गए जो जड़ से अपने
छुट गए जो घर से अपने
होठों पर होती है हँसी
दिल मे होता है रुदन
याद आती है उन्हें भी
अपनी धरती अपना वतन
रोज़ी रोटी के लिए मजबूर है
पर सारी दुनिया मे मशहूर है
तिलीस्मों सी इनकी कहानी है
ह्रदय मे एक रवानी है
देश तजा पर संस्कृति नही
परदेश मे भी हिन्दुस्तानी है...


अभिषेक आनंद - पुराने पन्नों से

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