सन्नाटा अच्छा लगता है
शहर के वीराने मे
आसमां मे छाई हो
धुंध भरी बदली
थकने लगे पाँव जब
क्षितिज को पाने मे
सन्नाटा अच्छा लगता है
रात के स्यांह अंधेरों मे
अजनबी हो जाती हैं साँस
अपनी ही आवाज जब
घुटने लगे सीने मे
सन्नाटा अच्छा लगता है...
अभिषेक आनंद - पुराने पन्नों से
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