Thursday, May 22, 2008

याद

मानव जीवन यादों का सफर
सफर जीने का बहाना है
कभी खुशी कभी गम
कभी अश्क बहाना है
घर छूटा बचपन छूटा
छूटे नेह भरे हाथ
जीवन के सफर मे
छुट गए जाने कितने साथ

यादों के सफर मे उमड़ आती
स्मृतियों की खान
याद आती स्नेह भींगी आँख
पखेरुओं की क्षितिज उडान
याद आता मुझे
आपना छोटा सा गांव
याद आती पीपल की छाव
सागवान पर छिटकी सिंदूरी शाम
लव-कुश का क्रिडांगन
शिव का पुण्य धाम
याद आते मुझे
इतिहास ध्वनित नाम
गज़ ग्राह मन्दिर मे
व्यतीत उपेक्षित शाम
याद आती मुझे वो धरती
जहा सीता को मिला सम्मान
जहा बीता मेरा बचपन अनजान


जीवन तो यहा भी है
है संग और साथ
पर बचपन की यादें
जन्मभूमि की सोंधी महक
जिसने सींचा मुझे
उसका कितना है मुझ पर हक़?
जहा हूँ मैं वो भी तो मेरा देश
पर मन कहता है ये परदेश
मेरे संग है रहते मेरे सहवासी
फिर भी कहलाता हूँ प्रवासी
यहा भी संग मेरे समुदाय
पर लगता है हूँ मैं असहाय

सोंचता हूँ तो विचलित होता है मन
तोड़ना चाहता है हर बन्धन
पर बेबस लाचार

अर्थ के चक्कर मे पिसता हूँ
यद्यपि मन करता है चीत्कार
मुझे नही चाहिए सुख सुविधायें
भोग और विलास
समय का घुमाता पहिया
पंहुचा दे मुझे
मेरी जन्मभूमि
मेरी माँ के पास...

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