Saturday, May 17, 2008

बन्धन


मुझको मत बंधो बन्धन मे
उड़ने दो उन्मुक्त गगन मे
प्रीत की हर कसमें झूठी
जीवन की हर रस्में झूठी
मेरे अंतस के शब्द भी झूठे
झूठ की मेड न बंधो
रहने दो मुझको विजन वन मे
बरिशो मे भीगते सपने
मुट्ठी भर दाना चुगते अपने
सडकों पर रेगता बचपन
बचपन मे भेद न डालो
उड़ने दो उन्मुक्त गगन मे

अभिषेक आनंद

4 comments:

समयचक्र said...

मुझको मत बंधो बन्धन मे
उड़ने दो उन्मुक्त गगन मे
बहुत बढ़िया धन्यवाद

Unknown said...

धन्यवाद महेंद्र जी और नाहर भाई आप हमारे साथ यूं ही जुड़े रहे तो मैं भी आपकी आशा पर खरा उतरने का सदा प्रयास करूँगा...

पूनम श्रीवास्तव said...

Abhishekji,
Mere blog par ane ke liye dhnyavad sveekaren.Bandhan kavita ke bhav ...shabd chayan..sabhee kuchh achchhe hain.Badhai

पूनम श्रीवास्तव said...

Abhishekji,
Mere blog par ane ke liye dhnyavad sveekaren.Bandhan kavita ke bhav ...shabd chayan..sabhee kuchh achchhe hain.Badhai