
चेहरा (जिसे भुलाना भ्रम होगा)
जिसने मुझे इस हद तक
बेचैन किया
कि मेरी कविता
शब्द से उठकर भाव बन गई
इक चेहरा,
जो नही है महज चेहरा
पर चेहरा शरीर नही होता
यह तो फकत होता है एक चेहरा
जिसे रख भी नही सकते अपने पास
चेहरा शरीर तो नही
पर जुड़ा होता है एक शरीर से
चाह कर भी अलग नही हो सकता
इसकी पहचान है शरीर से
और शरीर की पहचान है चेहरा
चेहरा
दिल का आइना होता है
पर दिल नही होता
दिल मे होती है भावनाये
चेहरा भावों का दर्पण होता है
चेहरा
कुछ नही होता
चेहरा भी नही
यह तो भ्रम होता है
भ्रम भी नही
भ्रम की परछाई होता है चेहरा
पर चेहरा कुछ तो होता है
तभी तो मेरी कविता
शब्द से उठ कर भाव बन जाती है
अभिषेक आनंद
जिसने मुझे इस हद तक
बेचैन किया
कि मेरी कविता
शब्द से उठकर भाव बन गई
इक चेहरा,
जो नही है महज चेहरा
पर चेहरा शरीर नही होता
यह तो फकत होता है एक चेहरा
जिसे रख भी नही सकते अपने पास
चेहरा शरीर तो नही
पर जुड़ा होता है एक शरीर से
चाह कर भी अलग नही हो सकता
इसकी पहचान है शरीर से
और शरीर की पहचान है चेहरा
चेहरा
दिल का आइना होता है
पर दिल नही होता
दिल मे होती है भावनाये
चेहरा भावों का दर्पण होता है
चेहरा
कुछ नही होता
चेहरा भी नही
यह तो भ्रम होता है
भ्रम भी नही
भ्रम की परछाई होता है चेहरा
पर चेहरा कुछ तो होता है
तभी तो मेरी कविता
शब्द से उठ कर भाव बन जाती है
अभिषेक आनंद
5 comments:
पर चेहरा कुछ तो होता है
तभी तो मेरी कविता
शब्द से उठ कर भाव बन जाती है
---आनंद जी" आपकी उक्त पंक्ति बेहद अच्छी लगी...शेष पूरी कविता अपने भाव में तो है ही. आप अच्छा लिखते हैं...और भी अच्छा लिखें...तमाम दुआओं के साथ...शुक्रिया.
बहुत बहुत धन्यवाद अमित सागर जी... आप लोगो का प्रोत्साहन मेरे लिए पथ प्रदर्शक होगा.
sach me kabhi kabhi kuch chehre nahi bhulaye ja sakte chah kar bhi nhi...
sah me kuch chehre kabhi nhi bhulaye ja sakte chah kar bhi nhi...
i knw ki mere comment ka is poem s koi bhi link nhi hai ye to sirf ek koshish hai apne frend tak pahuchne ki plz talk 2 me
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