Friday, August 22, 2008

मेरे हिस्से टूटी छानी

सोंधी खुशबू मिटटी वाली
भरी हुई कांच की प्याली
फागुन की मतवाली चाले
गूंज रही भौरों की बोली
मेरे हिस्से टूटी छानी, एक दर की दिवार सही
चंदन वाला वन उसको दे
कुबेर वाला धन उसको दे
मन्दिर की प्रतिमा उसको लिख
मस्जिद की गरिमा उसको लिख
मालिक पर्व अभावो वाला, पीडा का त्यौहार मुझको दे
यह सारा आकाश उसको दे
माँ का प्यार उसको दे
बचपन का संसार उसको लिख
जिंदगी का व्यापार उसको लिख
मेरे हिस्से बिखरे आंसू, जज्बातों का व्यापार सही
इन्द्र का सिंहासन उसको दे
एरावत का आसन उसको दे
कैलाश का वास उसको लिख
मानसरोवर का प्रवास उसको लिख
मौला मेरे हिस्से बासी रोटी, एक अदद अचार सही

Monday, August 18, 2008

सुन्दरता

अंगो का ये लावण्य अतुल
यह रूप राशि शुचि
परम सुघर!
मन मंत्र पाठ सा
करे यही,
सुंदर है
तू अतिशय सुंदर।

मुख चंद्र लगे मुझको तेरा
दो आँखे चमक रहे तारे
नासिका सुभग नभ गंगा सी
बालों को घेरे अंधियारे।
हंसते ही अरुणिम आभा से
थोड़ा आँखों का खुल जाना
दांतों की धवल रश्मियों मे
फिर रंग गुलाबी घुल जाना

तुम्हारा यह रूप मुझे
अक्सर ले जाता है अमराइयों मे
जहा मिले थे हम प्रथम कभी
तरु की शीतल परछाइयों मे