कहा है तू राज
कहा गई तेरी आवाज
जल रही है मुंबई
जल रहा है ताज
आतंकवादियो ने दिखाई है
तुझे तेरी औकात
निरीहों पे तू चिल्लाता है
कहर उनपर बरपाता है
तोड़ रहा अखंडता को
राष्ट्र मे नई सीमाये बनता है
जब आन पड़ी विपदा ख़ुद पर
चूहे की तरह बिल मे दुबक जाता है
मुंबई मे विध्वंश मचा है,
कहा है तेरी नवनिर्माण सेना?
ध्वंश का तू साथी है
विषवमन तेरा हथियार
दक्कन मुज्जहिद्दीन ने
दिखा दी है तेरी औकात
2 comments:
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Abhishekji,
Mere blog par ane aur tareef ke liye dhanyavad.Asha hai bhavishya men bhee ap mera utsah badhayenge.
Apkee kavita men bilkul sahee likha hai,Itnee badee ghatnaen ho jane ke bad bhee akhir kahan chhipe hain raj thakre?
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