Friday, August 22, 2008

मेरे हिस्से टूटी छानी

सोंधी खुशबू मिटटी वाली
भरी हुई कांच की प्याली
फागुन की मतवाली चाले
गूंज रही भौरों की बोली
मेरे हिस्से टूटी छानी, एक दर की दिवार सही
चंदन वाला वन उसको दे
कुबेर वाला धन उसको दे
मन्दिर की प्रतिमा उसको लिख
मस्जिद की गरिमा उसको लिख
मालिक पर्व अभावो वाला, पीडा का त्यौहार मुझको दे
यह सारा आकाश उसको दे
माँ का प्यार उसको दे
बचपन का संसार उसको लिख
जिंदगी का व्यापार उसको लिख
मेरे हिस्से बिखरे आंसू, जज्बातों का व्यापार सही
इन्द्र का सिंहासन उसको दे
एरावत का आसन उसको दे
कैलाश का वास उसको लिख
मानसरोवर का प्रवास उसको लिख
मौला मेरे हिस्से बासी रोटी, एक अदद अचार सही

4 comments:

Anwar Qureshi said...

बहुत खूब ...लिखा है आप ने ....

Unknown said...

बहुत खूब. बासी रोटी और अचार का मजा ही कुछ और है.

Anonymous said...

बहुत खूब. बासी रोटी और अचार का मजा ही कुछ और है.

dr amit jain said...

दोस्त अगर सब आप की तरह संतोष के साथ रहे तो शायद हमारा ही नही सब का जीवन मगल माय हो जाय / इस कविता को लिखने के लिए आप को साधू वाद
आप का मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित है