सोंधी खुशबू मिटटी वाली
भरी हुई कांच की प्याली
फागुन की मतवाली चाले
गूंज रही भौरों की बोली
मेरे हिस्से टूटी छानी, एक दर की दिवार सही
चंदन वाला वन उसको दे
कुबेर वाला धन उसको दे
मन्दिर की प्रतिमा उसको लिख
मस्जिद की गरिमा उसको लिख
मालिक पर्व अभावो वाला, पीडा का त्यौहार मुझको दे
यह सारा आकाश उसको दे
माँ का प्यार उसको दे
बचपन का संसार उसको लिख
जिंदगी का व्यापार उसको लिख
मेरे हिस्से बिखरे आंसू, जज्बातों का व्यापार सही
इन्द्र का सिंहासन उसको दे
एरावत का आसन उसको दे
कैलाश का वास उसको लिख
मानसरोवर का प्रवास उसको लिख
मौला मेरे हिस्से बासी रोटी, एक अदद अचार सही
4 comments:
बहुत खूब ...लिखा है आप ने ....
बहुत खूब. बासी रोटी और अचार का मजा ही कुछ और है.
बहुत खूब. बासी रोटी और अचार का मजा ही कुछ और है.
दोस्त अगर सब आप की तरह संतोष के साथ रहे तो शायद हमारा ही नही सब का जीवन मगल माय हो जाय / इस कविता को लिखने के लिए आप को साधू वाद
आप का मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित है
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