अंगो का ये लावण्य अतुल
यह रूप राशि शुचि
परम सुघर!
मन मंत्र पाठ सा
करे यही,
सुंदर है
तू अतिशय सुंदर।
मुख चंद्र लगे मुझको तेरा
दो आँखे चमक रहे तारे
नासिका सुभग नभ गंगा सी
बालों को घेरे अंधियारे।
हंसते ही अरुणिम आभा से
थोड़ा आँखों का खुल जाना
दांतों की धवल रश्मियों मे
फिर रंग गुलाबी घुल जाना
तुम्हारा यह रूप मुझे
अक्सर ले जाता है अमराइयों मे
जहा मिले थे हम प्रथम कभी
तरु की शीतल परछाइयों मे
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