ना जाउँ मैं यमुना तीरे
ना ही राधा के गावं
प्यारी लगे माँ मुझको
तेरे आंचल की छाव
ना जाउँ पत्थर पूजने,
बाग मे चुनने फूल
भली लगे माँ मुझको
तेरे चरणों की धुल
मां, तेरी महिमा है आपर
जनता है सब संसार
गणपति ने मन इसको
पाया प्रथम पूज्य अधिकार
तेरे आँचल मे माँ
मेरा संसार बसा है
तेरे चरणों मे माँ
मेरा जीवन आधार छुपा है
मेरी कविताएँ, मेरा संसार, कागज पर उकेरे गए मेरे दिल के अहसास, खाली वक्त के मेरे साथी, मेरे एकांत के सखा, वो आवाज जो कोई सुन न सका, जिसे किसी को सुना ना सका.....
Wednesday, June 11, 2008
Wednesday, June 4, 2008
रात है काली
भूख और रोटी समय की सवाली
गरीबी बन गई सबसे बड़ी गाली
जन्म नही ले पाती है लड़की
भ्रूण की किस्मत मे है नाली
भय, आतंक, अपहरण और हत्या
हर तरफ़ भरे है मवाली
चारो तरफ़ मॉल भरा है
मेरे सामने है टूटी थाली
कहा ख़रीदे सुख और सपने
हर किसी की जेब है खाली
दिन का सूरज धुंधला दिखता
अभी आने वाली रात है काली
गरीबी बन गई सबसे बड़ी गाली
जन्म नही ले पाती है लड़की
भ्रूण की किस्मत मे है नाली
भय, आतंक, अपहरण और हत्या
हर तरफ़ भरे है मवाली
चारो तरफ़ मॉल भरा है
मेरे सामने है टूटी थाली
कहा ख़रीदे सुख और सपने
हर किसी की जेब है खाली
दिन का सूरज धुंधला दिखता
अभी आने वाली रात है काली
खुशनसीबी
खुशनसीबी प्रश्नचिंह बन जाती है
जब कोई कहता है
बड़े खुशनसीब है आप
बहन नही है...
झूठ
झूठ
सच का अपभ्रंस है
इसमे भी सच्चाई का अंश है
जब कोई कहता है
बड़े खुशनसीब है आप
बहन नही है...
झूठ
झूठ
सच का अपभ्रंस है
इसमे भी सच्चाई का अंश है
Tuesday, June 3, 2008
Monday, June 2, 2008
अरमान
बड़े अरमान से बुने थे
सपने जो जीवन के
स्याह परछाइयों मे
पुरा अरमान होता रह गया
मिटटी की सोंधी महक
धुल मे गुजरे साल थे
खेतिहर कहलाने की चाह मे
गैरमजरुआ भूमि पर
धान होता रह गया
जिन्दगी की धुप छाह
गुजरे जिसकी आश मे
किश्तों मे पुरा वह
मकान होता रह गया
सबकुछ लुटा कर चाह थी
जिन्दगी को जानने की
कहने सुनाने मे ही
सुबह से शाम होता रह गया
सपने जो जीवन के
स्याह परछाइयों मे
पुरा अरमान होता रह गया
मिटटी की सोंधी महक
धुल मे गुजरे साल थे
खेतिहर कहलाने की चाह मे
गैरमजरुआ भूमि पर
धान होता रह गया
जिन्दगी की धुप छाह
गुजरे जिसकी आश मे
किश्तों मे पुरा वह
मकान होता रह गया
सबकुछ लुटा कर चाह थी
जिन्दगी को जानने की
कहने सुनाने मे ही
सुबह से शाम होता रह गया
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